सुखिया वह जो भी करे, निज मन पर अधिकार।
सुख दुःख मन के खेल हैं, इतना ही है सार।।
इतना ही है सार, खेल मन के है सारे।।
मन जीता तो जीत, हार है मन के हारे।।
ठकुरेला’ कविराय , बनो निज मन के मुखिया।।
जो मन को ले जीत, वही बन जाता सुखिया।।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
सुख दुःख मन के खेल हैं, इतना ही है सार।।
इतना ही है सार, खेल मन के है सारे।।
मन जीता तो जीत, हार है मन के हारे।।
ठकुरेला’ कविराय , बनो निज मन के मुखिया।।
जो मन को ले जीत, वही बन जाता सुखिया।।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
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