Friday, March 9, 2012

बगिया का मौसम

 -त्रिलोक सिंह ठकुरेला
बदल गया
बगिया का मौसम
चुप रहना .
गया बसंत,
आ गया पतझर ,
दिन बदले.
कोयल मौन,
और सब सहमे ,
पवन जले.
मुश्किल हुआ
दर्द उपवन का
अब सहना .
आकर गिद्ध
बसे उपवन में
हुआ गज़ब.
जुटे सियार
रात भर करते
नाटक अब.
अब किसको
आसान रह गया
सच कहना.

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