-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
सुनो, कबीर
बचाकर रखना
अपनी पोथी.
सरल नहीं
गंगा के तट पर
बातें कहना .
घडियालों ने
मानव बनकर
सीखा रहना .
हित की बात
जहर सी लगती
लगती थोथी
बाहर कुछ
अन्दर से कुछ हैं
दुनिया वाले .
उजले लोग
मखमली कपड़े
दिल है काले.
सब ने रखी
ताक पर जाकर
गरिमा जो थी
.
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