Saturday, December 31, 2011

नहीं समझता मंद

नहीं समझता मंदमति, समझाओ सौ बार।
मूरख से पाला पडे़, चुप रहने में सार।।
चुप रहने में सार, कठिन इनको समझाना।।
जब भी जिद ले ठान, हारता सकल जमाना।।
‘ठकुरेलाकविराय , समय का डंडा बजता ।।
करो कोशिशें लाख, मंदमति नहीं समझता।।


-
त्रिलोक सिंह ठकुरेला

No comments:

Post a Comment