कॉंटे को कहता रहे , यह जग उलजुलूल।
पर उसकी उपयोगिता , खूब समझते फूल।।
खूब समझते फूल, बाड़ हो कॉंटे वाली।।
तभी खिलें उद्यान , फूल की हो रखवाली।।
ठकुरेला’ कविराय, यहॉं जो कुदरत बॉंटे।।
उपयोगी हर चीज, फूल हों या फिर कॉंटे।।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
पर उसकी उपयोगिता , खूब समझते फूल।।
खूब समझते फूल, बाड़ हो कॉंटे वाली।।
तभी खिलें उद्यान , फूल की हो रखवाली।।
ठकुरेला’ कविराय, यहॉं जो कुदरत बॉंटे।।
उपयोगी हर चीज, फूल हों या फिर कॉंटे।।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
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