मजबूरी में आदमी , करे न क्या क्या काम।
वह और की चाकरी, करता सुबहो - शाम।।
करता सुबहो-शाम, मान, गरिमा निज तजता।।
सहे बोल चुपचाप, जमाना खूब गरजता।।
ठकुरेला’ कविराय , बनाते अपने दूरी।।
जाने बस भगवान , कराये क्या मजबूरी।।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
वह और की चाकरी, करता सुबहो - शाम।।
करता सुबहो-शाम, मान, गरिमा निज तजता।।
सहे बोल चुपचाप, जमाना खूब गरजता।।
ठकुरेला’ कविराय , बनाते अपने दूरी।।
जाने बस भगवान , कराये क्या मजबूरी।।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
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