- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
परिवर्तन केनये दौर में
सब कुछ बदल गया ।
भूली कोयल गीत सुरीले
मँहगाई की मारी
उपवन में सन्नाटा छाया
पसर गयी लाचारी
कैसे जुटें नीड़ के साधन
व्याकुल हुई बया
परिवर्तन के
नये दौर में
सब कुछ बदल गया ।
जानबूझ कर बन्दर मिलकर
मस्ती मार रहे
जहाँ लग रहा दाँव
वहीं से माल डकार रहे
कोई जिये-मरे, उनको क्या
उन्हें न हया, दया
परिवर्तन के
नये दौर में
सब कुछ बदल गया ।
जंगल के राजा ने सुनकर
राशन भिजवाया
कुछ को थोड़ा बाँट
तिकड़मी जोड़ रहे माया
मन में लड्डू फूट रहे
संसाधन मिला नया
परिवर्तन के
नये दौर में
सब कुछ बदल गया ।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
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