Friday, March 9, 2012

अभिलाषा का रथ

-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

सच कहना
अभिलाषा का रथ 
कब रुकता .
मिल जाते हैं
प्रियतम के सुख
प्रेम-डगर.
राजमहल,
सत्ता-सुख,सम्पति,
गाँव ,नगर.
किन्तु हिसाब
आज तक मन का
कब चुकता.
रहा भागता
तिर्यक पथ पर
पागल-मन .
कम ही रहा
बहुत पाकर भी   
जीवन-धन.
झुकता तन,
ये अहंकार शत
कब झुकता

बगिया का मौसम

 -त्रिलोक सिंह ठकुरेला
बदल गया
बगिया का मौसम
चुप रहना .
गया बसंत,
आ गया पतझर ,
दिन बदले.
कोयल मौन,
और सब सहमे ,
पवन जले.
मुश्किल हुआ
दर्द उपवन का
अब सहना .
आकर गिद्ध
बसे उपवन में
हुआ गज़ब.
जुटे सियार
रात भर करते
नाटक अब.
अब किसको
आसान रह गया
सच कहना.

सुनो कबीर

-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

सुनो, कबीर
बचाकर रखना
अपनी पोथी.
सरल नहीं
गंगा के तट पर
बातें कहना  .
घडियालों  ने
मानव बनकर
सीखा रहना .
हित की बात
जहर सी लगती
लगती थोथी

बाहर कुछ
अन्दर से कुछ हैं
दुनिया वाले .
उजले लोग
मखमली कपड़े
दिल है काले.

सब ने रखी
ताक पर जाकर
गरिमा जो थी

 .

Sunday, January 1, 2012

गतिविधियॉं यदि ठीक हो

गतिविधियॉं यदि ठीक हो, सब कुछ होगा ठीक।।
आ जायेंगे सहज ही, सारे सुख नजदीक।।
सारे सुख नजदीक, आचरण की सब माया।।
रहे आचरण ठीक, निखरते यष, धन, काया।।
ठकुरेलाकविराय , सहज मिलती सब निधियाँ।।
हो सुख की बरसात, ठीक हों यदि गतिविधियॉं।।



-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

असफलता को देखकर

असफलता को देखकर, रोक न देना काम।
मंजिल उनको ही मिली, जो चलते अविराम।।
जो चलते अविराम, न बाधाओं से डरते।।
असफलता को देख , जोश दूना मन भरते।।
ठकुरेलाकविराय , समय टेड़ा भी टलता।।
मत बैठो मन मार, अगर आये असफलता।।



-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

पल पल जीवन जा रहा

पल पल जीवन जा रहा, कुछ तो कर शुभ काम।
जाना हाथ पसार कर, साथ न चले छदाम।।
साथ न छदाम, दे रहे खुद को धोखा।।
चित्रगुप्त के पास , कर्म का लेखा जोखा।।
ठकुरेलाकविराय , छोड़िये सभी कपट छल।।
काम करो जी नेक, जा रहा जीवन पल पल।।


-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

उपयोगी हैं साथियो

उपयोगी हैं साथियो, जग की चीज तमाम।
पर यह दीगर बात है, कब किससे हो काम।।
कब किससे हो काम , जरूरत जब पड जाये।।
किसका क्या उपयोग, समझ में तब ही आये।।
ठकुरेलाकविराय, जानते ज्ञानी योगी।।
कुछ भी नहीं असार, जगत मे सब उपयोगी।।


-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

रोटी रोटी की जगह

रोटी रोटी की जगह, अपनी जगह खदान।
सोने को मिलता नही , रोटी वाला मान।।
रोटी वाला मान, भले मॅंहगा हो सोना।।    
रोटी वाला काम, नही  सोने से होना।।
ठकुरेलाकविराय , बैठती कभी न गोटी।।
स्वर्ण सदा ही स्वर्ण, और रोटी है रोटी।।


-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

कर्मों की गति गहन है

कर्मों की गति गहन है, कौन पा सका पार।
फल मिलते हर एक को, करनी के अनुसार।।
करनी के अनुसार, सीख गीता की इतनी।।
आती सब के हाथ, कमाई जिसकी जितनी।।
ठकुरेलाकविराय , सीख यह सब धर्मों की।।
सदा करो शुभ कर्म, गहन गति है कर्मों की।।



-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

सुखिया वह जो भी करे

सुखिया वह जो भी करे, निज मन पर अधिकार।
सुख दुःख मन के खेल हैं, इतना ही है सार।।
इतना ही है सार, खेल मन के है सारे।।
मन जीता तो जीत, हार है मन के हारे।।
ठकुरेलाकविराय , बनो निज मन के मुखिया।।
जो मन को ले जीत, वही बन जाता सुखिया।।


-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

मैली चादर ओढ़कर

मैली चादर ओढ़कर, किसने पाया मान।
उजले निखरे रूप का, दुनिया में गुणगान ।।
दुनिया मे गुणगान, दाग किसको भाते है।।
दाग-हीन छवि देख, सभी दौडे़ आते है।।
ठकुरेलाकविराय , यही जीवन की शैली।।
जीयें दाग-विहीन, फेंक कर चादर मैली।।


-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

पीड़ा के दिन ठीक हैं

पीड़ा के दिन ठीक हैं, यदि दिन हों दो चार।
कौंन मीत, मालुम पडे़ , कौन मतलबी यार।।
कौन मतलबी यार, समय पहचान कराता।।
रहे हितैषी साथ , मतलबी पास न आता।।
ठकुरेलाकविराय, उठाकर सच का बीड़ा।।
हो सब की पहचान, अगर हो कुछ दिन पीड़ा।।


-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

रूखी सूखी ठीक है

रूखी सूखी ठीक है, यदि मिलता हो मान।
अगर मिले अपमान से , ठीक नहीं पकवान।।
ठीक नही पकवान, घूँट विष की है पीना।।
जब तक जीना,यार, सदा इज्जत से जीना।।
ठकुरेलाकविराय  , मान की दुनिया भूखी।।
भली मान के साथ, रोटियॉं रूखी सूखी।।



-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

मजबूरी में आदमी

मजबूरी में आदमी , करे न क्या क्या काम।
वह और की चाकरी, करता सुबहो - शाम।।
करता सुबहो-शाम, मान, गरिमा निज तजता।।
सहे बोल चुपचाप, जमाना खूब गरजता।।
ठकुरेलाकविराय , बनाते अपने दूरी।।
जाने बस भगवान , कराये क्या मजबूरी।।


-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

कॉंटे को कहता रहे

कॉंटे को कहता रहे , यह जग उलजुलूल।
पर उसकी उपयोगिता , खूब समझते फूल।।
खूब समझते फूल, बाड़ हो कॉंटे वाली।।
तभी  खिलें उद्यान , फूल की हो रखवाली।।
ठकुरेलाकविराय, यहॉं जो कुदरत बॉंटे।।
उपयोगी हर चीज, फूल हों या फिर कॉंटे।।



-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

रोना कभी न हो सका

रोना कभी न हो सका, बाधा का उपचार।
जो साहस से काम ले, वही उतरता पार।।
वही उतरता पार , करो मजबूत इरादा।।
लगे रहो अविराम, जतन यह सीधा सादा।।
ठकुरेलाकविराय, न कुछ भी यूँ ही होना।।
लगो काम में यार, छोड़कर पल पल रोना।।


-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

दुविधा में जीवन कटे

दुविधा में जीवन कटे, पास न हों यदि दाम।
रूपया पैसे से जुटें, घर की चीज तमाम।।
घर की चीज तमाम, दाम ही सब कुछ भैया।।
मेला लगे उदास , न हों यदि पास रूपैया।।
ठकुरेलाकविराय , दाम से मिलती सुविधा।।
बिना दाम के मीत, जगत मे सौ सौ दुविधा।।



- त्रिलोक सिंह ठकुरेला

मिलते हैं हर एक को

मिलते हैं हर एक को, अवसर सौ सौ बार।
चाहे उन्हें भुनाइये, या कर दो बेकार।।
या कर दो बेकार, समय को देखो जाते।।
पर ऐसा कर लोग, फिरें फिर फिर पछताते।।
ठकुरेलाकविराय , फूल मेहनत के खिलते।।
जीवन मे बहु बार, सभी को अवसर मिलते।।



-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

चलते चलते एक दिन

चलते चलते एक दिन, तट पर लगती नाव।
मिल जाता है सब उसे, हो जिसके मन चाव।।
हो जिसके मन चाव, कोशिश सफल करातीं।।
लगे रहो अविराम , सभी निधि दौड़ी आतीं।।
ठकुरेलाकविराय  , आलसी निज कर मलते।।
पा लेते गंतव्य, सुधीजन चलते चलते।।


-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

मोती बन जीवन जियो

मोती बन जीवन जियो, या बन जाओ सीप।
जीवन उसका ही भला, जो जीता बन दीप।।
जो जीता बन दीप, जगत को जगमग करता।।
मोती सी मुस्कान, सभी के मन मे भरता।।
'ठकुरेलाकविराय, गुणों की पूजा होती।।
बनो गुणो की खान , फूल दीपक या मोती।।


-त्रिलोक सिंह ठकुरेला