-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
सच कहना
अभिलाषा का रथ
कब रुकता .
मिल जाते हैं
प्रियतम के सुख
प्रेम-डगर.
राजमहल,
सत्ता-सुख,सम्पति,
गाँव ,नगर.
किन्तु हिसाब
आज तक मन का
कब चुकता.
रहा भागता
तिर्यक पथ पर
पागल-मन .
कम ही रहा
बहुत पाकर भी
जीवन-धन.
झुकता तन,
ये अहंकार शत
कब झुकता